Saturday, December 19, 2015

दो शहरोँ की कहानी: मुम्बई व पेरिस के आतंकी हमलोँ से सीखे सबक

क्या 26/11 मुंबई में और पेरिस में 13/11 याद है?

ए.के.47 से लैस बैकपैक मेँ ग्रेनेड लादे 26/11 को मुंबई आतंकी हमलों की श्रृंखला मेँ पश्चिमी देशों और धनी भारतीयों द्वारा अक्सर प्रयुक्त हाई प्रोफाइल स्थानों को सुनियोजित तरीके से लक्षित किया गया था. 60 घंटे लंबे चले इस आपरेशन मेँ 195 की मृत्यु हुई और 295 से अधिक घायल हुए थे!

13 नवंबर 2015 की शाम को समन्वित आतंकवादी हमलों की एक श्रृंखला पेरिस, फ्रांस की राजधानी और इसके उत्तरी उपनगर सैंट डेनिस में घटित हुई। तीन आत्मघाती हमलावरों ने पहले सैंट डेनिस में स्टेड-डी-फ्रांस के पास और फिर बड़े पैमाने पर शूटिंग और आत्मघाती बम विस्फोट पेरिस के कैफे, रेस्तरां और एक संगीत समारोह स्थल पर किये, जिसमेँ हमलावरों ने 130 लोग मारे 386 लोग घायल किये।














वे मात्र कुछ लोग ही थे, फिर भी सीमित अवधि के लिए ही सही इन्होँने दो शक्तिशाली राष्ट्रों को बंधक बना लिया! वो अधिक होते और अधिक शहर उनके लक्ष्य होते तो कल्पना कीजिए! सोच का दायरा बढ़ाया जा सकता है, जो रीढ़ की हड्डी मेँ सिरहन पैदा कर सकता है. कल्पना कर सकते हैं - पूरे देश द्वारा कुछ आतंकवादियों को आत्मसमर्पण!

अपराधियों और अंडरवर्ल्ड तत्वों की मदद से पहले से ही कट्टरपंथियों द्वारा अंदर से खोखले किये गये राष्ट्रों को पराजित करने के लिये किसी सेना की आवश्यकता नहीँ, राष्ट्र्व्यापी अराजकता के लिये मात्र कुछ आतंकवादी ही पर्याप्त हैं। प्राथमिक समन्वय के साथ किसी भी देश के छह या सात शहरों में तीन या चार समूहों मेँ आतंकवादी सम्पूर्ण अव्यवस्था और अराजकता लाने के लिए सक्षम हैं। अच्छी तरह से प्रशिक्षित कुछ बेहद प्रेरित सशसत्र युवक दुनिया के प्रमुख लोकतंत्रों को हमेशा के लिये कलुषित कर सकते हैँ।

मुम्बई हमलोँ की दुखद घटना के आत्मनिरीक्षण की लंबे अंतराल के बाद आज हमनेँ क्या किया, क्या सीखा? क्या स्थितियाँ बदल गई हैं? क्या हमेँ बेहतर सुरक्षा प्राप्त है? हमनेँ क्या बेहतरी के सबक सीखे? अभी भी शहरों, इनकी प्रतिष्ठित इमारतों और सार्वजनिक स्थानों में सुरक्षा में सुधार वांछित हैँ और इस दिशा मेँ बहुत कुछ करना बाकी है। अमेरिकी गृह मंत्रालय द्वारा लगातार इराक के बाद आतंकवाद मेँ हताहत होने की दूसरी सबसे बड़ी संख्या वाले देश के रूप में भारत को सूचीबद्ध किया गया है। हालांकि पश्चिमी मीडिया द्वारा इस समस्या पर छणिक भी ध्यान नहीँ दिया जाता और यह कभी-कभी भारत मेँ रोष का कारण रहा है। अन्य प्रमुख शहरों में कई हमले होने के बावजूद पेरिस में 13/11 और मुंबई में 26/11 को हुए आतंकवादी हमलों के बाद आज इन दोनोँ शहरों को अनजाने ही दुनिया का आतंकवादी समस्या का केंद्र्बिंदु मान लिया गया.

मुंबई और पेरिस में आतंकवादियों के द्वारा हर स्तर पर हमला किया गया। उन्होँने स्टेडियम, रेलवे स्टेशन और थिएटर में मध्यम वर्ग के लोगों को मार डाला! उन्होँने लक्जरी कैफे, रेस्तरां, होटल और कॉन्सर्ट हॉल में अभिजात वर्ग को मार डाला! कैफे में खाना खाते पर्यटकों और बच्चों की मौत हो गई और अस्पताल पर हमला करते हुए आतंकवादियोँ ने बीमार और पहले से ही मर रहे लोगोँ को मारा! उन्होँने रेलवे स्टेशन, होटल या आवासीय इमारतोँ में तथा  सड़कों पर लोगों को मारा। वे भारतीयों, ब्रिटश, और अमेरिकियों, इजरायलियोँ और फ्रांसिसी और कई अन्य देशों को नागरिकोँ को मार देते हैँ। वे पुरुषों, महिलाओं, बच्चों, पुलिसकर्मी, फायरब्रिगेड कर्मी, डॉक्टरों और मरीजों को मौत के घाट उतारते हैँ। ये सुनियोजित तरीके से नृशंस हत्याकांड हैँ.

आम आदमी की देशभक्ति, कर्तव्य के प्रति समर्पण को व्यक्तिगत गौरव और सेवा की गाथाएँ बार-बार दोहरायी जायेँगी लेकिन इसके साथ-साथ अव्यवसायिकता, बेअक़ली, कायरता और भ्रष्टाचार के किस्से भी कहे जायेँगे। यहाँ एक पल का विराम देते हुए यह सोचना विवेकपूर्ण हो सकता है कि सुरक्षा पेशेवरों को इन रक्तमय घटनाओं से सीखने के लिये क्या सबक हैं? बेशक हम कुछ सबक सीख सकते हैं. इंटरनेट साइटस, ब्लॉग्स और इंटरनैट-समुदाय के विचारों से भी ईमानदारी के साथ कुछ सीखा जा सकता है।

पूरी घटनाओँ से सीखने लायक कई सबक हैं और उनमें से कुछ नीचे वर्णित हैं -

अधिकारियों के लिए सबक:

हमारा पड़ोसी जिसे हम प्यार से नफरत करते हैँ और वो नागरिक जिनकी हम चिंता भूल गये!
दुष्ट राष्ट्र! आतंकवादी राष्ट्र!! लोकतंत्र के लिए खतरनाक प्रयोगशाला!! ये सभी शब्द पाकिस्तान को अलग ढंग से चिह्नित करने के लिये काफी हैँ. यह राष्ट्र दशकों से बिना पतवार है और अब परमाणु क्षमताओं के साथ यह देश शायद दुनिया में सबसे खतरनाक देश है। औसत पाकिस्तानी में असमानता और हीनता की भावना मुख्य रूप से इस वजह से नहीं है कि उनके पास कुछ नहीँ है बल्कि इस कारण से है कि भारतीयों के पास क्या कुछ नहीँ है! हम मानेँ या न मानेँ इस्लामिक राष्ट्र के पास कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं को अस्थिर करने के संसाधन तथा ब्रिटेन के लगभग बराबर भूभाग और शक्तियाँ है। सीरिया और इराक के आसपास कई पड़ोसी देश बिखरने और उसके साथ शामिल होने की कगार पर हैं! यह एक बडे ब्लैक-होल की तरह नाकाम रहे टूटते सितारों की तरह राष्ट्रोँ को निगल करने के लिए तैयार है !

अमेरिका पर अक्सर फ्रांस के प्रति-आतंकवादी (काउंटर-टैरेरिस्म) प्रयासोँ को पूर्वाग्रह पूर्ण दृष्टिकरण रखने का अरोप लगाया जा सकता है क्योँकि 1980 के परिदृश्य मेँ फ्राँन्स न्यमित रूप से कई आतंकवादी संगठनोँ को सहायता करता था. 1090 मेँ दृश्य नाट्कीय रूप से बदल गया  जब अल्जीरियाई समूहों ने पेरिस हमलोँ की एक श्रृंखला शुरू की और फ्राँस् को सख्ती के लिये मजबूर कर दिया. तब से फ्रांस दुनिया भर में जिहादियों का एक खतरनाक और कुशल दुश्मन बन् गया है।

दिसंबर 2001 में संसद पर हमले के बाद भारत पाकिस्तान के खिलाफ जुट गया और दोनोँ देश युद्ध के बहुत करीब आ गये थे जो परमाणु हथियारों से लैस शक्तियों के लिए एक भयावह संभावना है। अब फ्रांस ने रक्का, इराक पर गंभीर हमलोँ की शुरूआत की है । आज यह रूस की भाँति चुनिंदा प्रशिक्षण शिविरों, भंडारोँ और इस्लामी राज्य के छुपने के ठिकानों पर अनवरत हवाई हमले कर रहा है.

सभी अच्छे, उदार मेजबान देश की भाँति फ्रांस में मुसलमान रहे हैं। मुसलमानों में से अधिकांश प्रवासियों हैं। फ्रांस ने अपने सभी संसाधनों, सामाजिक योजनाओं और कल्याणकारी उपायों को उनके साथ साझा किया है लेकिन वह पर्याप्त नहीं लगता! मुस्लिम कट्टरपंथी युवा वहाँ व्याप्त असमानता से असंतुष्ट हैं लेकिन अपनी समृद्धि के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार नहीं। अपने-अपने देशों को विकसित करते हुए जो भारतीय और फ्रांसीसी ने कड़ी मेहनत, धैर्य और परिश्रम किया है वह मुस्लिम जिहादियों के लिए कोई माने नहीँ रखता। उनकी तुलना का केंद्र बिंदु वह सुख-सुविधाएँ हैँ जिनका उपभोग भारतीय या फ्रेंच नागरिक करते हैँ।

अल्पकालिक और दीर्घकालिक नीतियोँ की सराहना करने के साथ यह भी ध्यान से ना हटे कि कि ज्यादातर मुस्लिम कट्टरपंथी युवा अपने देश के प्रतिष्ठानों के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए तैयारी कर रहे हैं. इस्लाम की बहाबी-सलाफी व्याख्या में विश्वास रखने वाले लोग मुसलमानों मेँ सबसे रूढ़िवादी कट्टरपंथियों रहे हैं और वे इस्लाम की अपनी व्याख्या का पालन नहीं करने पर अपने सह-धर्मियोँ को भी मारने से नहीँ  हिचकिचाते।

यूरोपीय देशों की मलिन-बस्तियों में रहने वाले और सांस्कृतिक गौरव और स्वाभिमान से वंचित इन युवाओँ को यह विचारधारा उनके जीवन में कुछ वैध कारण, उद्देश्य और प्रयोजन प्रदान करती है और वो सहर्ष इसे स्वीकार करते हैँ. संतुलित रूप से सोचने वाले लोग योरोपीय देशोँ मे सीरियाई शरणार्थियों को आमंत्रित करना अपने घर में अपराधियों को आमंत्रित करने जैसा मानते हैँ.

निम्न दो चित्रों से तथाकथित सीरियायी शरणार्थियों की रेखांकित मानसिकता का संकेत मिलता है और मेजबान देश में शरण प्राप्त करने के बाद उनके अगले कदम स्पष्ट होते हैँ -
                 

ग्रीक पौराणिक कथाओं के जानकार स्वीकरेँगे कि पर्सियस की तरह सांपोँ को (बालोँ के स्थान पर) काटना  समस्या का समाधान कभी नहीं था मेडुयुसा का सिर काटना था! पर्सियस की तरह, हमेँ आतंकवाद समाप्त को करने के लिये आतंक के प्रजनन केंद्रोँ को नष्ट करना होगा को इराक, सीरिया और पाकिस्तान हैं!

खुफिया तंत्र की विफलता
हाई प्रोफाइल स्थानों को लक्षित, बैकपैक  में ग्रेनेड के साथ AK47 चलानेवाले आतंकवादियों के द्वारा मुंबई आतंकवादी हमले एक सुनियोजित और समन्वित श्रृंखला थे। यहाँ भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की एक बड़े पैमाने पर विफलता प्रकट होती है. भारतीय खुफिया अधिकारियों ने ताजमहल होटल पर एक आसन्न हमले की सूचना मुम्बई पुलिस के साथ साझा की थी. 26/11 के संबंध में, सुरक्षा विशेषग्योँ के अनुसार यह इतने बडे स्तर पर बंधक बनाते हुए पहला आतंकी हमला और पुलिस पर सीधा प्रहार था। हाई प्रोफाइल होटल को निशाना बनाना, प्रतिष्ठित इमारतों और विदेशियों पर हमले के प्रयास आदि से पता चलता है कि कम से कम एक उद्देश्य विश्व-व्यापार के लिए तैयार एक देश के रूप में विदेशों में भारत की छवि को नुकसान पहुंचाना था ।

यह कई पाठकों के लिए अप्रासंगिक लग सकता है, लेकिन जानकार शोधार्थियोँ को अच्छी तरह पता है कि घटना के शीघ्र बाद बाहर आयी जानकारी आमतौर पर सबसे अधिक विश्वसनीय होती है। यहाँ भयग्रस्त प्रत्यक्षदर्शियों और मची भगदड़ के बाद आई रिपोर्टों से संबंधित भ्रम के अस्तित्व को छूट देना आवश्यक है। 13/11 पेरिस हमलों के मामले में प्रारंभिक रिपोर्ट 5 बंदूकधारियों को इंगित करती हैँ। कुछ ही समय बाद रिपोर्ट केवल दो का उल्लेख करती हैँ। केवल कुछ ही घंटे के हमले के बाद  हालांकि, एक से अधिक गनमैन के सभी संदर्भों को केवल "लोन गनमैन" की कहानी पूरी तरह से हटा देती है। इस बिंदु के बाद अतिरिक्त बंदूकधारियों के किसी भी अन्य उल्लेख को "षड्यंत्र सिद्धांत" के रूप में उपहास कह कर टाल दिया जा रहा है। अमेरिका के केलोफोर्निया मेँ पकिस्तानी मूल के दम्पत्ति दारा किये हाल के हत्या-कान्ड को भी पहले आतंकी घटना नकारा गया था.

चार्ली हेब्दो के एक बड़े आतंकी हमले के बाद सतर्क सुरक्षा और फ्राँन्स के मुस्तैद खुफिया-तंत्र के साथ साथ जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के आसन्न सम्मेलन की पृष्ठभुमि मेँ इस तरह की घटनाओँ की आशंका और भी बढ गयी थी फिर भी यह घटना घटित हुई. आखिरकार फ्रांस एक पुलिस राज्य नही हौ तो कुछ भी नहीँ है। यह अपने नागरिकों से गोपनीय व्यक्तिगत सूचनाएँ हासिल करने मेँ अमेरिका को भी पीछे छोड रहा है. इसमें कोई शक नहीं है इस घटनाके बारे मेँ  भी हमेँ बताया जायेगा कि कैसे "प्रथम विश्व के उच्च स्तरीय सैन्य निगरानी वाले राज्यों” को “प्रागैतिहासिक असभ्योँ” ने हरा दिया.

8 अंकीय ग्रिड संदर्भ नहीँ - यह मात्र गुप्तचर्या है!
सम्पूर्ण विश्व प्रसिद्ध् जासूसोँ की आत्मकथओँ मेँ एक बार भी उदाहरण नहीँ मिलता कि वो कभी कोई शत-प्रतिशत सटीक खुफिया खबर दे पाये होँ! जो कर पाये थे वो कहानी लिखने के लिये जिंदा नहीँ बचे! गुप्त आसूचना संग्रहण, संकलन एवम प्रसार का क्षेत्र इतनी सम्भावनाओँ से भरा हुआ है कि आसूचना समय और स्थान मूल्य कोँ हटाने के बाद अंतिम उपयोगकर्ता के पास पहुंचती है। यह प्रकट है कि भारतीय और फ्रांसीसी सुरक्षा एजेंसियाँ  सोते हुए पकडीँ गयीँ, परिणाम स्वरूप एक बड़े पैमाने पर खुफिया विफलता स्पष्ट होती है, वह भी तब जब कि स्थानों का उल्लेख करते हुए एक आसन्न हमले के प्रति दोने को ही कुछ समय पूर्व ही जागरूक किया गया था!

लेकिन ये याद रखना होगा कि एक कार्ययोग आसूचना प्राप्त होने पर भी उसमेँ काफी कुछ जोडना व  घटाना पडता है. निर्बाध रूप से आने वाली आसूचनाएँ विशेषज्ञोँ को एक खाका बनाने मेँ, एक आकलन करने और बुद्धिमान अनुमान बनाने मेँ सहायता करती हैँ. लेकिन यह सोचना निहायत मूर्खता होगी कि दुनिया की कोई भी गुप्त्चर संस्था समय मिली सेकेंड मेँ या फिर स्थान 8 अंकोँ का ग्रिड रेफ्रेंस मेँ देगी! अगर ऐसा होता है भी तो जब तक यह अंत मेँ जब ज़मीन पर काम करने वालोँ लोगोँ तक पहुँचती है तो बहुत से परिवर्तशील आँकडे बदल चुके होते हैँ, क्योँकि आतंकवादी कभी भी अपने स्थान, समय, संख्या, हथियार या रंग-ढंग बदल सकते हैं! याद रखिये कि उनके भी 'प्लान बी’ होते हैँ!

हालांकि मुंबई हमले के लिये प्रवेश करने को आतंकवादियोँ द्वारा इस्तेमाल की गयी नाव का निर्बाध भारत की दिशा मेँ 72 घंटे की यात्रा करना कोई शुभ संकेत नहीँ था. फिर भी उसी क्षेत्र मेँ फिर से पाकिस्तानी नौकाओँ को सफलता पूर्वक भरतीय तट रक्षक दल द्वारा सफलता पूर्वक रोका गया जो इंगित करता है कि जमीनी हालात कुछ सुधरे हैँ

इसी तरह पेरिस 3/11 के आतंकवादियों हमलोँ मेँ ‘ब्लैक-फ्राईडे’ के अघोषित मंतव्य के अलावा भी दिन शुक्रवार, महीने की 13वीँ तारीख को होने वाला नरसंहार कुछ दिनोँ मेँ ही फ्रांस में आयोजित जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले हुआ है. फ्रांस की सरकार में संभवतः यह पूर्व आशंका थी कि वैश्वीकरण और ऊर्जा संचयन का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन हिंसक हो सकने और कथित तौर पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की उम्मीद भी थी। काफी दिलचस्प है कि फ्रांस ने पहले से ही पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की प्रत्याशा में सार्वजनिक अव्यवस्था और आतंकवादी खतरे को देखते हुए 30 नवंबर से ही सीमा-नियंत्रण को लागू करने की योजना बनाई थी.

जमीन, हवा और समुद्र - आतंक के तीन आयाम!
बडे दुस्साहसिक रूप में समुद्र के रास्ते को मुंबई पहुंचने के लिए इस्तेमाल किया गया था इस लिये मुंबई आतंकी हमले को अधिक अप्रत्याशित कहा गया है। यह स्पष्ट भी है, पर किसी पुराने योद्धा से पूछिये -  किसी भी आपरेशन की सफलता की संभावना को सीधे धृष्टता की मात्रा से संबंधित हैं किया जाता है. कोई भी पुराना फौज़ी पुष्टि करेगा कि सामने से होने वाले आक्रमण भले ही खतरोँ से भरे होँ पर उनके सफल होने की सम्भावना भी ज्यादा होती है. यही नीति फिदायीन आतंकवादियों के खिलाफ उठाए जाने की आवश्यकता है और उनको चुन-चुन कर सामाप्त करना जरूरी है।

आतंकवाद के लिए 9/11 में वायु यानोँ का सहारा लिया गया. तमिल टाइगर्स के पास युद्धक विमानों का बेडा था! अन्य विभिन्न श्रेणियों के विमान आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किये जाते रहे हैँ. इस्लामिक राष्ट्र भी युद्धक विमानोँ का प्रयोग करता रहा है. कुछ समय की ही बात है जब मानवरहित यान का भी प्रयोग प्रारम्भ हो सकता है. भारत की सीमावर्ती क्षेत्रों में 'प्रीडेटर' जैसे यूएवी का खुल कर इस्तेमाल हो रहा है. इस्लामी राष्ट्र को सहायता और समर्थन करने वाले पाकिस्तान जैसे संदिग्ध देशों की अच्छी संख्या को धन्यवाद कि उन्हेँ इस के लिये समुचित आपूर्ति हो रही है।

कुछ समय पूर्व व्हाईट हाउस के लान मेँ गिरा एक छोटा ड्रोन. ये छोटे ड्रोंस कितने बडे खतरे हो सकते हैँ? (http://www.wsj.com/articles/criminals-terrorists-find-uses-for-drones-raising-concerns-1422494268)

अपराधियोँ एवम आतंकवादियोँ द्वारा ड्रोन का बढता प्रयोग गम्भीर चिंता का विषय है क्योँकि इनकी टोह ले पाना और निशाना बनाना अत्यंत मुश्किल है. हाल ही मेँ एक ड्रोन दुर्घटना के बाद व्हाईट हाउस मेँ गिरा था, जिसने अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियोँ की नीँद उडा दी. आकस्मिक दुर्घटना की सम्भावना से बढ़ कर चिंता का विषय है इनका पता लगाना और रोकना. कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने अमेरिका की सीमा के पार और जेलोँ मे ड्रग्स की स्मग्लिंग करने वालों मेँ तेजी से लोकप्रिय उपभोक्ता-ड्रोन के बारे मेँ चिंता व्यक्त की है. कब इन ‘उपभोक्ता ड्रोंस’ की जगह ‘हथियार-लैस ड्रोंस’ ले लेँगे, कहना कठिन है. अमेरिका,  जर्मनी, स्पेन और मिस्र में अधिकारियों नेँ 2011 के बाद से कम से कम छह संभावित आतंकवादी हमलों को नाकाम कर दिया है। दिल्ली हवाई अड्डे के पास संदिग्ध ड्रोन देखे जाने की कल की ही रिपोर्ट है. यह कहाँ से उडा और किधर चला गया, यह जान पाना किसी भी तरह से सम्भव नहीँ है.

फिर दूरस्थ नियंत्रित, टाइमर उपकरणों से संचालित आईईडी से लदे खिलौना-विमान भी विस्फोट करने के लिए तैयार किये जा रहे हैं. अचानक से आसमान किसी भी प्रकार से शांति के लिये अधिक अनुकूल प्रतीत नहीँ हो रहा!

आतंकवाद के व्यापार कार्यक्षेत्र : आउट सोर्सिंग और वित्त पोषण
साठ दशक के मध्य मेँ अंडरवर्ल्ड सोने की तस्करी को बहुत ही लाभप्रद व्यवसाय मानता था. शीघ्र ही यह मादक पदार्थोँ की तस्करी की मांग बढ गई। हथियारोँ, नशीले पदार्थों और काले धन के गैरकानूनी व्यवसाय एक घातक संयोजन बन गया. और फिर छोटे तस्करों ने स्वतंत्र रूप से संचालन बंद का दिया. जल्द ही कॉर्पोरेट संस्कृति की कार्य-शैली का तस्करों और आतंकवादियों द्वारा प्रयोग किया जाएन लगा.

डी-कंपनी (दाउद इब्राहिम का गिरोह, मुंबई विस्फोटों के आरोपी भारतीय) ने हवाला करोबार के जरिये अपने गुर्गों का उपयोग कर दूर देश से अपने कारोबार को चलाना शुरू किया. इस प्रकार की तस्करी और माफिया गतिविधियों को भारत से कहीँ दूर देशोँ में और कार्पोरेट कंपनी के व्यापार की तरह चलाए जा रहा हैं. आतंकवाद भी एक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और लश्कर, जैश या कई अन्य आतंकवादी संगठन द्वारा अपने कैडर को सीधे पाकिस्तान से सक्रिय करने की आवाश्यकता नहीँ है क्योँकि ‘स्थानीय प्रतिभाएँ’ वहाँ  आसानी से उपलब्ध है!

जैसे कॉर्पोरेटस साफ-सफाई और रखरखाव सेवाओं को आउट-सोर्स करते हैँ और अपनी केंद्रीय गतिविधियोँ को चलाने के लिये वित्त-पोषण के लिये अन्य गतिविधियोँ मेँ भाग लेते हैँ, वैसे ही 'आतंकवाद' को किसी एक व्यापार की तरह लाभोत्पादक अन्य व्यावसायिक गतिविधियों द्वारा अवशोषित किया जा सकता है या एक आतंकी व्यवसाय अन्य व्यवसायों के मुनाफे द्वारा वित्त-पोषित किया जा सकता है. अधिक से अधिक उनके व्यापार कार्यक्षेत्रोँ के रूप में अचल संपत्ति, काले धन को वैध करना और हथियार, मादक पदार्थॉ की तस्करी शामिल हो रही है!

आतंकवाद के वित्त पोषण के मामले 11 सितंबर, 2001 को संयुक्त राज्य अमेरिका पर विदेशी आतंकवादी हमलों के बाद सुर्खियों में आये.  अमेरिकी सरकार  अन्य कारणों के अलावा आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने का प्रयास करने के लिए ‘संयुक्त राज्य अमेरिका पैट्रियट अधिनियम’ और ‘एंटी मनी लॉन्ड्रिंग’ बिल पारित किये ताकि इस समस्या पर अमेरिकी वित्तीय संस्थानों द्वारा पर्याप्त ध्यान केंद्रित करना सुनिश्चित किया जाये. अधिनियम में राज्यक्षेत्रातीत प्रभाव हैँ और गैर- अमेरिकी बैंकों के बैंकिंग खातों के एएमएल/सीएफटी प्रक्रियाओं को उन्नत करने के लिए बाध्य किया है. पैट्रियट अधिनियम के बाद से संयुक्त राज्य अमेरिका में एक बडा विवाद खडा किया है फिर भी भारत, ब्रिटेन या फ्रांस मेँ समान रूप से कठोर कानून समय की मांग हैं। आतंकवाद से खुद को सुरक्षित करने के लिए सभी देशों को लिए इस प्रकार के कानून अधिनियमित करने जरूरी हैँ।

जुलाई 2010 में, जर्मनी ने आए.एच.एच. नामक संगठन को प्रतिबंधित किया था जिस पर यूरोपीय संघ द्वारा हमास से जुड़े होने का शक था जिसे वे एक आतंकवादी संगठन मानते हैँ. वर्ष 2009 में ऑस्ट्रेलियाई लेनदेन रिपोर्ट और विश्लेषण केंद्र Australian Transaction Reports and Analysis Centre (AUSTRAC) और अन्य एजेंसियों ने जाँच मेँ पाया था कि आस्ट्रेलिया से धनराशि सोमालिया स्थित आतंकवादी समूह, अल-शबाब द्वारा उपयोग के लिए भेजी जा रही थी.

नवंबर 22, 2015 को भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सुझाव पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने काले धन को वैध करने के खिलाफ लड़ाई और आतंकवाद के वित्त पोषण को रोकने को एक प्राथमिकता बनाया है. मलेशियाई राजधानी क्वालालम्पुर में ‘पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन’ में एक हस्तक्षेप करते हुए  मोदी ने कहा कि आतंकवाद "अब एक परिधीय समस्या" नहीँ है और आतंकी समूहों ने पेरिस और अंकारा में हाल के हमलोँ मेँ सिद्ध कर दिया है कि लक्ष्य चुनने के लिये स्थान और सदस्यों की भर्ती के लिये क्षेत्र की उनको कोई कमी नहीँ है. पेरिस हमलों की छाया में आयोजित तुर्की के अंताल्या में ‘जी -20 शिखर सम्मेलन’ में प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया भर में आतंकवाद से लड़ने की योजना के एक अभिन्न अंग के रूप में आतंकवाद के वित्त-पोषण को रोकना बताया.आअज जब आतंकवाद से कोई भी देश अछूता नहीँ बचा है. आतंकवाद की परिभाषा के बिना इसके खिलाफ कोई सशक्त प्रयास सफल हो पाने मेँ संदेह है. भारत अपने को विश्व मेँ सबसे ज्यादा आतंकवाद प्रभावित देश बताता है, जो कि तथ्य भी है, फिर भी इसे आतंकवाद परिभाषित करने के लिये सन्युक्त राष्ट्र संघ पर क्योँ निर्भर रहने की आवशयकता है? 

1 comment:

Unknown said...

Nice post
I appreciate this

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